
कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर में बड़ी संख्या में मरीज लंग्स फाइब्रोसिस के शिकार हुए हैं। लंग्स फाइब्रोसिस के कई मरीज मौत के मुंह में चले गए, कई अब भी इलाज के लिए बेहाल हैं। मुश्किल यह है कि लंग्स फाइब्रोसिस का इलाज बेहद महंगा है। इकमो मशीन से इसके इलाज पर प्रतिदिन एक से डेढ़ लाख रुपये का खर्च आता है और अगर अंतिम विकल्प फेफड़े के प्रत्यारोपण की जरूरत पड़ी तो डेढ़ करोड़ रुपये का भारी भरकम खर्च होना तय है।
दूसरी लहर में संक्रमण का असर ऐसा रहा है मरीजों के फेफड़े 80 से 90 प्रतिशत तक खराब हुए हैं। ऐसे कई मरीजों की मौत बीआरडी मेडिकल कॉलेज से लेकर निजी अस्पतालों में हो चुकी है। इन सबके बीच अब भी इस तरह के मरीज मिल रहे हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक फेफड़ों के खराब होने को विज्ञान की भाषा में लंग्स फाइब्रोसिस कहते हैं। लंग्स फाइब्रोसिस के मरीज बीआरडी मेडिकल कॉलेज में आ रहे हैं। ऐसे मरीजों को डॉक्टर लखनऊ रेफर करने की सलाह दे रहे हैं। वजह यह है कि इन मरीजों के इलाज के लिए इकमो मशीन की जरूरत पड़ती है, जो बीआरडी में नहीं है। डॉक्टरों के मुताबिक ऐसे मरीजों को बचाने का एक ही और अंतिम विकल्प है, फेफड़ों का प्रत्यारोपण।
डॉक्टर की भी लंग्स फाइब्रोसिस से गई थी जान
शहर के रहने वाले 44 साल के एक डॉक्टर कोरोना संक्रमित हुए। परिजन इलाज के लिए दिल्ली के एक बड़े हॉस्पिटल में ले गए। जांच के दौरान पता चला कि उनका फेफड़ा 80 प्रतिशत से अधिक खराब हो चुका है। ऐसे में फेफड़ा बदलना पड़ेगा। इसके लिए परिजन किसी तरह तैयार हुए, लेकिन इससे पहले ही उनकी मौत हो गई। बताया जाता है कि वह भी कई दिनों तक इकमो मशीन के सपोर्ट पर थे।
फेफड़ों के प्रत्यारोपण से पहले ही हो गई मौत
दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्रोफसर डॉ मानवेंद्र प्रताप सिंह कोरोना से संक्रमित हुए थे। कुछ ही दिनों में उनका फेफड़ा 80 प्रतिशत से अधिक खराब हो गया। लखनऊ में कुछ दिनों तक वह इकमो मशीन पर रहे। इस बीच हैदराबाद में फेफड़ा प्रत्यारोपण के लिए बात चली। एयर एंबुलेंस तक की व्यवस्था हो गई थी, लेकिन मशीन का सपोर्ट हटाने के बाद कुछ ही घंटों में उनकी मौत हो गई।

डेढ़ करोड़ से ज्यादा है फेफड़े के प्रत्यारोपण का खर्च
डॉ अश्वनी मिश्रा ने बताया कि फेफड़े के प्रत्यारोपण का खर्च काफी महंगा है। एक प्रत्यारोपण में डेढ़ करोड़ से ज्यादा का खर्च आता है। देश में हैदराबाद के अलावा पीएमएस वेल्लोर में फेफड़े का प्रत्यारोपण होता है। इसके अलावा इकमो मशीन की सुविधा भी पीजीआई में है। ऐसे मरीजों को हर हाल में इकमो मशीन पर रखना पड़ता है।

काफी महंगा है इकमो मशीन से इलाज
आईएमए के सचिव व चेस्ट फिजिशियन डॉ वीएन अग्रवाल ने बताया कि दूसरी लहर में लंग्स फाइब्रोसिस की चपेट में आने से कई मरीजों की मौत हुई है। कई मरीजों को लखनऊ रेफर किया गया है, जिनका इलाज इकमो मशीन के जरिए हुआ है। यह मशीन मरीज का खून बाहर निकालकर यंत्र के माध्यम से ऑक्सीजेनेशन कर वह खून फिर से शरीर के अंदर पहुंचा देती है। यह एक कृत्रिम प्रक्रिया है। इसमें शरीर में पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन मिल जाती है। इस मशीन से इलाज के लिए एक से डेढ़ लाख रुपये प्रतिदिन खर्च करना पड़ता है।
20 से अधिक मरीजों को करना पड़ा रेफर
बीआरडी मेडिकल कॉलेज के चेस्ट विभागाध्यक्ष डॉ अश्विनी मिश्रा ने बताया कि लंग्स फाइब्रोसिस बीमारी में फेफड़ों के अंदर मौजूद ऊतक यानी टिश्यू सूजने लगते हैं। इस वजह से शरीर में ऑक्सीजन की कमी होने लगती है। इससे खून का बहाव शरीर में कम होने लगता है। स्थिति गंभीर होने पर दिल ढंग से काम नहीं करता। नतीजा मल्टी ऑर्गन फेल्योर, हार्ट अटैक या गंभीर अवस्था में मौत हो जाती है। इस तरह के कई केस बीआरडी मेडिकल कॉलेज में दूसरी लहर में आए। ऐसे 20 से अधिक मरीजों को रेफर भी किया गया, जो आर्थिक रूप से मजबूत थे।



