यह पर्व बसंत ऋतु के आगमन का सूचक है. बसंत को ऋतुओं का राजा माना जाता है. इस अवसर पर प्रकृति के सौन्दर्य में अनुपम छटा का दर्शन होता है. वृक्षों के पुराने पत्ते झड़ जाते हैं और बसंत में उनमें नई कोपलें आने लगती है जो हल्के गुलाबी रंग की होती हैं. खेतों में सरसों की स्वर्णमयी कांति अपनी छटा बिखेरती है. ऐसा लगता है मानों धरती ने बसंत परिधान धारण कर लिया है. जौ और गेहूं पर इन दिनों बालें आनी प्रारंभ हो जाती हैं. पक्षियों का कलरव बरबस ही मन को अपनी ओर खींचने लगता है.
माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी का त्यौहार होता है और इस दिन मां सरस्वती की पूजा अर्चना की जाती है। माना जाता है कि बसंत पंचमी मां सरस्वती को खुश करने का सबसे अच्छा दिन होता है। बसंत पंचमी को सरस्वती पूजा, वागीश्वरी जयंती, बसंत उत्सव कई नामों से देश के अलग-अलग इलाकों में मनाया जाता है। इस बार ये उत्सव 5 फरवरी शनिवार को है। मां सरस्वती को बुद्धि, ज्ञान और विवेक की देवी कहा जाता है। इस कारण ज्यादातर छात्र वर्ग या पठन-पाठन से जुड़े लोग मां सरस्वती की पूजा अर्चना करते हैं।
ब्रज में भी बसंत के दिन से होली का उत्सव शुरू हो जाता है. राधा-गोविन्द के आनंद विनोद का उत्सव मनाया जाता है. यह उत्सव फाल्गुन की पूर्णिमा तक चलता है. इस दिन कामदेव और रति की पूजा भी होती है. बसंत कामदेव का सहचर है, इसलिए इस दिन कामदेव और रति की पूजा करके उनकी प्रसन्नता प्राप्त करनी चाहिए. इसी दिन किसान अपने खेतों से नया अन्न लाकर उसमें घी और मीठा मिलाकर उसे अग्नि, पितरों, देवों को अर्पण करते हैं. सरस्वती पूजन से पूर्व विधिपूर्वक कलश की स्थापना करनी चाहिए. सर्वप्रथम भगवान गणेश, सूर्य, विष्णु, शंकर आदि की पूजा करके सरस्वती पूजन करना चाहिए. इस प्रकार बसंत पंचमी एक सामाजिक त्यौहार है जो हमारे आनंदोल्लास का प्रतीक हैं.



