बस्ती : पूरब की गंगा कही जाने वाली आमी नदी अपनी उपेक्षा से कराह रही है। नदी धीरे धीरे नदी नाले में बदलती जा रही है।क्षेत्र के लोगों के लिए जीवनदायिनी आमी नदी की हर स्तर पर उपेक्षा हो रही है। इसे बचाने के लिए अब तक कोई सार्थक प्रयास नहीं किया गया है। इस नदी को बचाने के लिए कुछ लोगों द्वारा धरना प्रदर्शन व आंदोलन भी किया जा चुका है। मामले में प्राथमिकी तक दर्ज कराई जा चुकी है। इसके बाद भी नदी की स्थिति कोई सुधार नहीं हुआ। लंबे प्रयास के बाद भी इसे गहरा करने की योजना जरूर बनाई गई। इससे नदी का स्वरूप बदल कर नाले में तब्दील हो गया। पूर्व में एक मिल द्वारा नदी में दूषित जल गिराया जा रहा था।
यह नदी सिद्धार्थनगर जिले के डुमरियागंज तहसील के कोहड़ा सिकहरा ताल से निकलकर गोरखपुर जिले के सोहगौरा में जाकर राप्ती नदी में मिल जाती है। इसकी कुल लंबाई लगभग 211 किलोमीटर है।पूर्व में इस नदी से किसानों द्वारा फसलों की सिंचाई भी की जाती थी।लोग पशुओं को नहलाने धोने के साथ ही इसके पानी का उपयोग प्यास बुझाने के लिए भी करते थे। लेकिन वर्तमान समय में उपेक्षा का शिकार होते हुए आमी नदी पूरी तरीके से सिकुड़ गई है। साफ-सफाई के अभाव में आमी नदी में कूड़े कचरे और गंदगी का अंबार लगा हुआ है।क्या कहते क्षेत्र के लोग क्षेत्र के लोगो का कहना कि दिन बा दिन आमी नदी उपेक्षा का शिकार होती जा रही है साफ सफाई के अभाव में नदी का पानी दूषित व गंदगी से पट रहा है। क्षेत्र की जीवनदायिनी गंगा कही जाने वाली आमी नदी में क्षेत्र के सैकडो गॉव के लोगों द्वारा खेत की सिंचाई सहित अन्य उपयोग में आने वाली नदी आज उपेक्षा का शिकार हो चुकी है इसके बचाव के लिए जिम्मेदारों द्वारा कोई बेहतर प्रयास नहीं किया जा रहा है।




