डीजल में लगी आग ने निर्यातकों की भी हालत खराब कर दी है। लागत बढ़ने से करीब 130 करोड़ रुपए का निर्यात रोक दिया गया है। भाड़े में करीब 20 फीसदी की वृद्धि से घाटे की चपेट में कारोबारी आ गए हैं। डीजल-पेट्रोल के भाव आसमान पर होने से एक तरफ आम आदमी बेहाल है तो उनसे ज्यादा खराब स्थिति निर्यातकों की है।
पहले ही कोरोना से पस्त कारोबारियों की उत्पादन लागत केवल भाड़े ने बेतहाशा बढ़ा दी है। कानपुर से निर्यात का शिपमेंट कांधला बंदरगाह और मुंबई बंदरगाह से जाता है। वहां तक कंटेनरों से माल वाया सड़क जाता है। सड़क परिवहन का भाड़ा 15 से 20 फीसदी बढ़ गया है जबकि शिपमेंट कन्साइनमेंट दो से तीन गुना तक कर दिया गया है। इस वजह से कारोबारी घाटे में आ गए हैं।
ऐसे हो गए बेहाल
– कानपुर से लेदर का सालाना निर्यात 8000 करोड़ (कोविड से पहले)
– कोरोना के बाद महंगे शिपमेंट और ट्रक भाड़े ने तोड़ी कमर
– कानपुर से कांधला और मुंबई बंदरगाह वाया सड़क जाते हैं कंटेनर
– एक कंटेनर का भाड़ा 32 से 35 हजार रुपए था, जो अब 36 से 42 हजार रुपए हो गया
– पोर्ट से वाया शिप यूरोप जाते हैं कंटेनर, उसका भी भाड़ा ढाई गुना तक हो गया
– पहले 900 यूरो प्रति कंटेनर शिप का भाड़ा, अब अब 2100 से 2600 यूरो तक
– औसत 20 फीसदी से ज्यादा की वृद्धि केवल भाड़े पर, उत्पादन लागत आसमान में
– भारी भरकम भाड़े की वजह से घाटे में आ गए कारोबारी, होल्ड कर दिया एक हिस्सा
– सैडलरी उत्पादों में 50 करोड़ और फिनिश्ड लेदर में 80 करोड़ से ज्यादा का निर्यात रोका
डीजल व पेट्रोल की कीमतों का जबर्दस्त असर लेदर सेक्टर में पड़ा है। कानपुर से यूरोप लेदर उत्पाद वाया शिप जाते हैं। बंदरगाह तक सड़क मार्ग से कंटेनर जाते हैं। जिनके भाड़े में 20 फीसदी तक की बढ़ोतरी हो गई है। हालात खराब हैं और निर्यात पर विपरीत असर पड़ रहा है। – जावेद इकबाल, रीजनल चेयरमैन चर्म निर्यात परिषद
पहले ही तमाम मुसीबतों से जूझ रहे लेदर उद्योग के लिए पेट्रो उत्पादों के दाम नई चुनौती लेकर आए हैं। सैडलरी में पॉलीप्रापलीन और पालीमर का खासा इस्तेमाल होता है। पैकिंग में अलग से पालीमर का इस्तेमाल है इसलिए सैडलरी इंडस्ट्री पर चौतरफा मार पड़ी है। निर्यात रोकने की नौबत आ गई है।